Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंछसंग्रह : ५ निषेकरचनाकाल है। इसके बाद आगे के संहननों और संस्थानों के युगल बनाकर अनुक्रम से दो-दो कोडाकोडी सागरोपम की वृद्धि करना चाहिए । वह इस प्रकार से समझना चाहिए
दूसरे ऋषभनाराचसंहनन और न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान की बारह कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है। बारहसौ वर्ष अबाधाकाल
और अबाधाकाल से हीन शेष दलिक-निषेकरचनाकाल है। तीसरे नाराचसंहनन और सादिसंस्थान की चौदह कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्टस्थिति, चौदहसौ वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष दलिकरचनाकाल है। चौथा अर्धनाराचसंहन और कुब्जसंस्थान की सोलह कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है, सोलहसौ वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है। पांचवें कीलिकासंहनन और वामनसंस्थान की अठारह कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है, अठारहसौ वर्ष का अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है तथा सेवार्तसंहनन और हुंडकसंस्थान की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है, दो हजार वर्ष का अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है।
इस प्रकार संहनन और संस्थान नामकर्मों के छह-छह भेदों की कर्मरूपतावस्थानलक्षणा एवं अनुभवयोग्या उत्कृष्ट स्थिति जानना चाहिए।
सूक्ष्मत्रिक-सूक्ष्म, साधारण और अपर्याप्त तथा विकलत्रिक-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जाति तथा वामनसंस्थान इन सात प्रकृतियों
१ कुछ एक आवार्य क्रम गणना में वामन को चौथा संस्थान मानते हैं। अतएव
उनके मतानुसार वामनसंस्थान की उत्कृष्ट स्थिति सोलह कोडाकोडी सागरोपम की है। परन्तु पंवसंग्रहकार इसे पांचवां संस्थान मानते हैं। इनको यह मत इष्ट नहीं है कि वामनसंस्थान चौथा संस्थान है। इसीलिए
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