Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
रहने तक और इतर - देव, नारक छह मास से अधिक आयु जब तक शेष हो तब तक परभव की आयु नहीं बांधते हैं । इसका कारण यह है कि उनकी आयु का तीसरा भाग बहुत बड़ा होता है ।
विशेषार्थ - इन दो गाथाओं में एक शंका का पूर्व पक्ष प्रस्तुत किया गया है ।
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शंका-- भुज्यमान आयु के दो भाग बीतने पर शेष रहे तीसरे भाग में परभव की आयुबंध होने का जो नियम कहा है, वह असंभव है । इसका कारण यह है कि भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यंच अपनी भुज्यमान आयु का जब तक कुछ अधिक पल्योपम का असंख्या - तवां भाग शेष हो तब तक परभव की आयु नहीं बांधते हैं । परन्तु पल्योपम का असंख्यातवां भाग शेष रहे तभी परभव की आयु बांधते हैं तथा इतर देव और नारक अपनी आयु का छह मास से अधिक भाग शेष हो तब तक परभव की आयु का बंध नहीं करते हैं, परन्तु छह मास आयु शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं। क्योंकि भोगभूमिज मनुष्य - तिर्यंचों और देव नारकों की आयु का तीसरा भाग बहुत बड़ा होता है । भोगभूमिज मनुष्य तिर्यंचों का तीसरा भाग पत्योपम प्रमाण और देव नारकों की आयु का त्रिभाग ग्यारह सागर प्रमाण होता है और आयु का इतना बड़ा भाग शेष रहे तब परभव की आयु का बंध घट नहीं सकता है । परन्तु पल्योपम का असंख्यातवां भाग आदि शेष रहे तब बंध होना घट सकता है । जब यह बात है तो अपनी आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बंध और पूर्वकोटि का तीसरा भाग अबाधा यह जो कहा है, वह सब असंगत है ।
१ यह कथन उनकी अपेक्षा समझना चाहिए जो युगलिक मनुष्यों और तिर्यंचों के पल्योपम का असंख्यातवां भाग अबाधा मानते हैं । उनके मत से पत्योपम का असंख्यातवां भाग शेष रहे तब परभव की आयु बांधते हैं ।
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