Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा४७
१७६
शब्दार्थ-पुवेए-पुरुषवेद, अवासा-आठ वर्ष, अट्ठमुहुत्ताआठ मुहूर्त, जसुच्चगोयाणं- यशःकीर्ति, उच्चगोत्र की, साए-सातावेदनीय की, बारस-बारह मुहूर्त, हारगविग्घावरणाण-आहारकद्विक, अन्तरायपंचक और आवरण द्विकों की, किंचूणं-कुछ कम मुहूर्त अर्थात् अन्तमुहूर्त ।
गाथार्थ-पुरुषवेद की जघन्य स्थिति आठ वर्ष की, यशः कीर्ति और उच्चगोत्र की आठ मुहूर्त की, सातावेदनीय की बारह मुहूर्त की, आहारकद्विक, अन्तरायपंचक एवं आवरणद्विकों-ज्ञानावरणपंचक तथा दर्शनावरणचतुष्क की कुछ कम मुहूर्त-अंतमुहूर्त की जघन्य स्थिति है।
विशेषार्थ- गाथा में पुरुषवेद आदि बीस प्रकृतियों की जघन्य स्थिति का निर्देश किया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है----
'पुवेए अट्ठवासा'-अर्थात् पुरुषवेद की जघन्य स्थिति आठ वर्ष प्रमाण है और अन्तमुहूर्त अबाधाकाल है। यशःकीर्तिनामकर्म और उच्चगोत्र की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त-अट्ठमुहुत्ता, सातावेदनीय की बारह मुहूर्त, आहारकद्विक-आहारकशरीर, आहारक-अंगोपांग, अन्तरायकर्म की दानान्तराय आदि पांच और मतिज्ञानावरण आदि ज्ञानावरणपंचक तथा चक्षुदर्शनावरण आदि दर्शनावरणचतुष्क कुल मिलाकर इन सोलह प्रकृतियों की जघन्य स्थिति कुछ कम मुहूर्त यानी अन्तमुहूर्त है।1 अन्तमुहर्त प्रत्येक का अबाधाकाल है तथा अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है। ___इस प्रकार से बीस प्रकृतियों की जघन्य स्थिति जानना चाहिये। अब पूर्व और इस गाथा में कही गई प्रकृतियों से शेष रही प्रकृतियों की जघन्य स्थिति को बतलाते हैं१ यहाँ आहारकद्विक की अन्त मुहूर्त प्रमाण जघन्य स्थिति अज्ञात मतान्तर
विशेष की अपेक्षा समझना सागर चाहिए। अन्यथा सभी कर्मसिद्धान्त एवं कर्मग्रन्थों में अन्तःकोडाकोडी प्रमाण बतलाई है। जिसका उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है।
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