Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २०
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बंध होने पर दो की सत्ता होती है । यहाँ दो प्रकृतिक सत्ता रूपं एक भूयस्कार होता है और वह भी तब जानना चाहिये जब परभव की -आयु का बंध हो । एक प्रकृतिक रूप एक अल्पतरसत्कर्म होता है और वह भी तब जब अनुभूयमान भव की आयु की सत्ता का नाश होने के बाद जिस समय परभव की आयु का उदय होता है । अवस्थितसत्कर्मस्थान दोनों हैं । इसका कारण यह है कि दोनों सत्तास्थान अमुक काल पर्यन्त होते हैं । किन्तु अवक्तव्यसत्कर्म नहीं होता है। क्योंकि आयुकर्म की सत्ता का नाश होने के पश्चात् पुनः उसका सत्व प्राप्त नहीं होता है।
दर्शनावरण - इसके तीन सत्तास्थान हैं- नौ प्रकृतिक, छह प्रकृतिक और चार प्रकृतिक । इनमें से क्षपकश्र णि की अपेक्षा अनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थान के संख्यात भाग पर्यन्त और उपशमणि की अपेक्षा उपशान्तमोहगुणस्थान पर्यन्त नौ प्रकृतियों की सत्ता होती है । क्षपकश्रेणि में अनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थान के संख्याता भागों के बाद से आरम्भ कर क्षीणमोह गुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त छह प्रकृतियों की और चरम समय में चार प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
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दर्शनावरण के इन प्रकृतिस्थानों में भूयस्कार एक भी घटित नहीं होता है । क्योंकि क्षपकश्रेणि में छह और चार की सत्ता होने के पश्चात् पतन नहीं होता है । अल्पतर दो हैं - १ छह प्रकृतिक और २ चार प्रकृतिक । नौ से छह की और छह से चार की सत्ता में जाने से ये दो अल्पतर घटित होते हैं । अवस्थितसत्कर्म दो हैं- १ नौ प्रकृतिक और २ छह प्रकृतिक । इनमें से नौ की सत्ता अभव्य के अनादि-अनन्त और भव्य के अनादि - सान्त है और छह की सत्ता अन्तमुहूर्त मात्र ही होती है तथा चार प्रकृतिक सत्तास्थान एक समय मात्र ही होने से वह अवस्थित रूप नहीं होता है तथा समस्त प्रकृतियों का विच्छेद होने के
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