Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५
'पश्चात् पुनः सत्ता सम्भव न होने से अवक्तव्यसत्कर्म भी घटित नहीं होता है ।
मोहनीय कर्म - मोहनीय के पन्द्रह सत्तास्थान होते हैं - १ अट्ठाइस प्रकृतिक, २ सत्ताईस प्रकृतिक, ३ छब्बीस प्रकृतिक, ४ चौबीस प्रकृतिक, ५ तेईस प्रकृतिक, ६ बाईस प्रकृतिक, ७ इक्कीस प्रकृतिक, ८ तेरह प्रकृतिक, ६ बारह प्रकृतिक, १० ग्यारह प्रकृतिक, ११ पांच प्रकृतिक, १२ चार प्रकृतिक, १३ तीन प्रकृतिक, १४ दो प्रकृतिक और : १५ एक प्रकृतिक 11
जिनका विबरण इस प्रकार है- जब सभी प्रकृतियों की सत्ता हो तब अट्ठाईस प्रकृतिक स्थान होता है । उसमें से सम्यक्त्वमोहनीय की उलना करने पर सत्ताईस प्रकृतिक और मिश्रमोहनीय की उद्वलना करने अथवा अनादि मिथ्यादृष्टि के छब्बीस प्रकृतिक तथा अट्ठाअनन्तानुबंधिकषायचतुष्क का क्षय होने पर चौबीस प्रकृतिक, मिथ्यात्व का क्षय होने पर तेईस प्रकृतिक, मिश्रमोहनीय का क्षय होने पर बाईस प्रकृतिक और सम्यक्त्वमोहनीय का क्षय होने पर इक्कीस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । तत्पश्चात् क्षपकश्रेणि में आठ कषाय का क्षय होने पर इक्कीस प्रकृतियों में से उनको कम करने पर तेरह प्रकृतिक, नपुंसकवेद का क्षय होने पर बारह प्रकृतिक, स्त्रीवेद का क्षय होने पर ग्यारह प्रकृतिक, छह नोकषायों का क्षय होने पर पांच प्रकृतिक, "पुरुषवेद का क्षय होने पर चार प्रकृतिक, संज्वलन क्रोध का क्षय होने पर तीन प्रकृतिक, संज्वलन मान का क्षय होने पर दो प्रकृतिक और संज्वलन माया का क्षय होने पर एक प्रकृतिक सत्तास्थान होता है।
१ दिगम्बर कर्म साहित्य में भी इसी प्रकार मोहनीयकर्म के पन्द्रह सत्तास्थानों का निर्देश किया है | देखिए पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गाथा ३३ । २ दिगम्बर कर्मसाहित्य में अनन्तानुबन्धिचतुष्क का क्षय अथवा विसंयोजन होने पर मोहनीयकर्म का चौबीस प्रकृतिक सत्वस्थान होना बताया है ।
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