Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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एक सौ नौ, तरह, २७ एकताईस, ३१
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. पंचसंग्रह : ५ सात, २१ एक सौ आठ, २२ एक सौ नौ, २३ एक सौ दस, २४ एक सौ ग्यारह, २५ एक सौ बारह, २६ एक सौ तेरह, २७ एक सौ चौदह, २८ एक सौ पच्चीस, २६ एक सौ छब्बीस, ३० एक सौ सत्ताईस, ३१ एक सौ अट्ठाईस, ३२ एक सौ उनतीस, ३३ एक सौ तीस, ३४ एक सौ इकतीस, ३५ एक सौ तेतीस, ३६ एक सौ चौंतीस, ३७ एक सौ पैंतीस, ३८ एक सौ छत्तीस, ३६ एक सौ सैंतीस, ४० एक सौ अड़तीस, ४१ एक सौ उनतालीस, ४२ एक सौ चालीस, ४३ एक सौ इकतालीस, ४४ एक सौ बयालीस, ४५ एक सौ तेतालीस, ४६ एक सौ चवालीस, ४७ एक सौ पैंतालीस और ४८ एक सौ छियालीस । प्रत्येक के साथ प्रकृतिक शब्द जोड़ लेना चाहिये।
ये सत्तास्थान जिस प्रकार से बनते हैं, अब उसका विचार करते हैं
सयोगिकेवली के अघाति प्रकृति सम्बन्धी अस्सी आदि जो चार सत्तास्थान हैं, उनमें घातिकर्म सम्बन्धी सत्तास्थानों को अनुक्रम से मिलाने पर ये अड़तालीस सत्तास्थान होते हैं। इस संक्षिप्त कथन का विशेषता के साथ स्पष्टीकरण इस प्रकार है
सामान्य केवली के अयोगिगुणस्थान के चरम समय में तीर्थंकरनाम रहित ग्यारह प्रकृतियों का और उसी समय तीर्थंकर केवली के तीर्थकरनाम सहित बारह प्रकृतियों का सत्तास्थान होता है। उन बारह प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं-मनुष्यायु, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, सुभग, आदेय, यशः कीर्ति, तीर्थकर, अन्यतर वेदनीय और उच्चगोत्र । __ सयोगिकेवली अवस्था में अस्सी, इक्यासी, चौरासी और पचासी प्रकृतिक, इस प्रकार चार सत्तास्थान होते हैं। उनमें अस्सी प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैंदेवद्विक, औदारिकचतुष्क, वैक्रियचतुष्क, तैजसशरीर, कार्मण
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