Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ५ ८-उनतीसप्रकृतिक ६-तीसप्रकृतिक १० इकतीसप्रकृतिक ११नौप्रकृतिक और १२-आठप्रकृतिक 11 जो इस प्रकार हैं
१-नामकर्म की बारह ध्र वोदया प्रकृतियों में मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय और यशःकीर्ति इन आठ प्रकृतियों को मिलाने से बीसप्रकृतिक उदयस्थान बनता है। यह उदयस्थान समुद्घातगत अतीर्थकेवलि के कार्मणकाययोग के समय होता है।
नामकर्म के इक्कीसप्रकृतिक आदि उदयस्थान अनेक जीवों की अपेक्षा अनेक प्रकार से बनते हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये ।
२-(क) नामकर्म की बारह ध्र वोदया प्रकृतियों के साथ तिर्यंचगतिद्विक, स्थावर, एकेन्द्रियजाति, बादर-सूक्ष्म में से एक, पर्याप्तअपर्याप्त में से एक, दुर्भग, अनादेय तथा यशःकीर्ति-अयशःकीर्ति में से कोई एक, इन नौ प्रकृतियों को मिलाने पर इक्कीसप्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान भव के अन्तरालगति में विद्यमान एकेन्द्रिय जीव के होता है।
(ख) ध्र वोदया बारह प्रकृतियों के साथ तियंचगतिद्विक, द्वीन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त में से कोई एक, दुर्भग, अनादेय तथा यशःकोति-अयशःकीति में से कोई एक, इन नौ प्रकृतियों के मिलाने पर इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान भव के अपान्तराल में विद्यमान द्वीन्द्रिय जीव के प्राप्त होता है।
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का भी इक्कीसप्रकतिक उदयस्थान जानना चाहिये किन्तु द्वीन्द्रियजाति के स्थान पर
१ गो. कर्मकाण्ड गाथा ५६२ में भी नामकर्म के इसी प्रकार से बारह उदयस्थान बताये हैं
वीसं इगचउवीसं तत्तो इगितीसओत्तिएयधियं । उदयट्ठाणा एवं णव अट्ठ य होंति णामस्स ।। For Private & Personal Use Only
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