Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधबिधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
अल्पतरोदय-नामकर्म के बारह उदयस्थानों में नौ अल्पतरोदय हैं। इसका कारण यह है कि कोई भी जीव नौ के उदयस्थान से आठ के उदयस्थान में एवं इक्कीस के उदयस्थान से बीस के उदयस्थान में नहीं जाता है। क्योंकि नौ और इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान तीर्थंकर के होता है, वे सामान्य केवली के उदयस्थान में जाते नहीं, इसलिए ये दो अल्पतरोदय घटित नहीं होते हैं। तथा कोई भी जीव पच्चीस के उदयस्थान से चौबीस के उदयस्थान में नहीं जाता है। क्योंकि संसारी जीव अपर्याप्त अवस्था में चौबीस के उदय से पच्चीस के उदयस्थान में प्रवेश करता है, परन्तु पच्चीस के उदयस्थान से चौबीस के उदयस्थान में नहीं आता है। जिससे अल्पतरोदय नौ होते हैं। ___ अब यह विचार करते हैं कि ये अल्पतरोदय तीर्थंकर और सामान्य केवली के समुद्घात और अयोगि दशा प्राप्त होने पर किस तरह होते हैं। - स्वभावस्थ सामान्यकेवली के मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, बस, बादर, पर्याप्त, सौभाग्य, यशःकीर्ति, आदेय, अगुरुलघु, निर्माण, तेजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वज्रऋषभनाराचसंहनन, उपघात, प्रत्येक, औदारिकद्विक, छह संस्थान में से कोई एक संस्थान, पराघात, उच्छवास, अन्यतर विहायोगति, सुस्वर-दुःस्वर में से एक, इन तीस प्रकृतियों का और तीर्थंकरकेवली के तीर्थंकरनाम सहित इकतीस प्रकृतियों का उदय होता है। जब ये समुद्घात में प्रवृत्त होते हैं तब समुद्घात करते सामान्यकेवली के दूसरे समय में औदारिकमिश्रकाययोग में वर्तमान रहते पराघात, उच्छ वास, अन्यतर
१ उक्त कथन का यह भाव हुआ कि आठ प्रकृतिक और बीस प्रकृतिक रूप
दो अल्पतरोदय घटित नहीं होते हैं। परन्तु यहीं आगे ये दोनों अल्पतर घटित किये हैं । अतएव इस परस्पर विरुद्धकथन को विद्वज्जन स्पष्ट करने की कृपा करें।
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