Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
(ख) तिर्यंच पचेन्द्रियों के स्वर सहित तीस प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर इकतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
(ग) अतीर्थकर केवली के तीस प्रकतिक उदयस्थान में तीर्थकरनाम को मिलाने पर केवली भगवान के इकतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह स्थान तीर्थंकर सयोगिकेवली के औदारिककाययोग के समय होता है।
११–तीर्थंकर केवली के मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति और तीर्थकरनाम यह नौ प्रकृतिक उदयस्थान है । जो अयोगिकेवलीगुणस्थान में प्राप्त होता है।
१२-पूर्वोक्त नौ प्रकृतिक उदयस्थान में से तीर्थकरनाम को कम कर देने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह अतीर्थंकर केवली के अयोगिकेवलीगुणस्थान में प्राप्त होता है। - इस प्रकार नामकर्म के बारह उदयस्थान विभिन्न जीवों की अपेक्षा अनेक प्रकार से बनते हैं। अब इन बारह उदयस्थानों में भूयस्कार आदि उदयों का विचार करते हैं।
भूयस्कारोदय-नामकर्म के बारह उदयस्थानों में आठ भूयस्कार होते हैं । क्योंकि बीस के उदयस्थान से इक्कीस के उदयस्थान में, आठ
१ नामकर्म के उपर्युक्त २०, २१ आदि प्रकृतिक बारह उदयस्थानों के
स्वामियों का गो. कर्मकांड गाथा ५६३ से ५६८ तक सामान्य और विशेष से कथन किया है। जिसका संक्षिप्त सारांश इस प्रकार है
२१ के स्थान के चारों गति के जीव स्वामी हैं, २४ के एकेन्द्रिय, २५ के विशेष मनुष्य, देव, नारक, एकेन्द्रिय; २६ के एकेन्द्रिय आदि पंचेन्द्रिय तक सामान्य जीव; २७ के विशेष पुरुष, देव, नारक, एके न्द्रिय; २८ और २६ के सामान्य पुरुष, पंचेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, विशेष पुरुष, देव और नारक; ३० के पंचेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा ह और ८ के स्थान के अयोगिकेवली स्वामी हैं।
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