Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८
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ज्ञानवरणपंचक, अंतरायपंचक और दर्शनावरणचतुष्क की क्षय होते-होते जब सत्ता में एक आवलिका शेष रहती है तब बारहवें गुणस्थान की अंतिम आवलिका में केवल उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है।
क्षपक श्रेणी में सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में संज्वलन लोभ की एक आवलिका के शेष रहने पर उदीरणा नहीं होती है, केवल उदय ही होता है।
क्षायिक सम्यक्त्व उपार्जन करते समय जब चरम आवलिका शेष रहे तब सम्यक्त्वमोहनीय की उदारणा नहीं होती है, किन्तु उदय ही रहता है।
उपशम सम्यक्त्व उपार्जित करते समय अनिवृत्तिकरण की प्रथम स्थिति की एक आवलिका के शेष रहने पर मिथ्यात्वमोहनीय का केवल उदय होता है, उदीरणा नहीं होती है।
त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय जाति, तीर्थंकर नाम और उच्च गोत्र इन दस प्रकृतियों की अयोगि अवस्था में योग के अभाव में उदीरणा नहीं होती है, मात्र उदय ही होता है।
साता-असातावेदनीय की अप्रमत्तगुणस्थान से तथाविध अध्यवसाय के अभाव में उदीरणा नहीं होती, केवल उदय सम्भव है।
स्त्रीवेद के उदय में क्षपकश्रेणि आरम्भ करने वाले के स्त्रीवेद की, नपुसकवेद के उदय में आरम्भ करने वाले के नपुसकवेद की और पुरुषवेद के उदय में आरंभ करने वाले के पुरुषवेद की अपनी-अपनी प्रथम स्थिति की जब एक आवलिका शेष रहती है तब उदीरणा नहीं होती है, केवल उदय संभव है। ___ इसी कारण उपर्युक्त इकतालीस प्रकृतियों का उदय होने पर भी उदीरणा भजनीय समझना चाहिये तथा इनसे शेष रही इक्यासी प्रक
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