Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
५-पूर्वोक्त सत्तर प्रकृतियों में से आयु रहित उनहत्तर प्रकृतियों को बांधने पर पांचवां अल्पतर होता है।
६-एकेन्द्रियादि योग्य पच्चीस और शेष छह कर्म की तेतालीस इस प्रकार अड़सठ प्रकृतियों को बांधने पर छठा अल्पतर होता है।
७-आयु के साथ-साथ सात कर्म की चवालीस और एकेन्द्रिययोग्य नामकर्म की तेईस प्रकृतियां इस प्रकार सड़सठ प्रकृतियां बांधने पर सातवां अल्पतर होता है।
८-पूर्वोक्त में से आयु के बिना छियासठ प्रकृतियों को बांधने पर आठवां अल्पतर जानना चाहिए । वे छियासठ प्रकृतियां इस प्रकार हैं
ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणनवक, एक वेदनीय, बाईस मोहनीय, तेईस नामकर्म, एक गोत्र और अन्तरायपंचक।
६-चौथे अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में ज्ञानावरणपचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, सत्रह मोहनीय, एक आयु, एक गोत्र, अन्तरायपंचक और नामकर्म की देवगति-योग्य तीर्थंकरनाम सहित उनतीस, इस प्रकार पैंसठ प्रकृतियों को बांधने पर नौवां अल्पतर होता है।
१०-११-पूर्वोक्त में से तीर्थकरनाम और आयु इन दोनों में से एक कम करके चौंसठ और दोनों कम करके वेसठ प्रकृतियों को बांधने पर चौंसठप्रकृतिक और वेसठप्रकृतिक दसवां और ग्यारहवां अल्पतर होता है।
१२–पांचवें गुणस्थान में ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, तेरह मोहनीय, एक आयु, एक गोत्र, अन्तरायपंचक
और नामकर्म की उनतीस, इस प्रकार इकसठ प्रकृतियों को बांधने पर बारहवां अल्पतर होता है।
१३-१४-पूर्वोक्त में से तीर्थंकर और आयु में से एक-एक कम
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