Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०-११
उत्तर- चार भेद ग्रहण करने का कारण यह है कि किसी समय अनुत्कृष्ट पर सादि आदि चार भंग घटित होते हैं तो किसी समय अजघन्य पर । किसी समय अनुत्कृष्ट पर तो कभी अजघन्य पर दो भंग घटित होते हैं । इस प्रकार भंगों की घटना भिन्न-भिन्न रीति से होने के कारण चार भेद लिये हैं । जिसका विशेष स्पष्टीकरण मूल और उत्तर प्रकृतियों में घटित करते समय किया जायेगा ।
तथा
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'ते वि हु' अर्थात् वे उत्कृष्ट आदि प्रत्येक भेद भी यथासंभव
३३
१ ये उत्कृष्ट आदि सभी भेद सादि आदि चार विकल्पों में घटित नहीं होते हैं, इसीलिये यहां यथासंभव पद दिया है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट रसंबंधादि ऊपर के गुणस्थानों में होता है; उनके अनुत्कृष्ट भेद पर सादि आदि चार भंग घटित होते हैं । क्योंकि ऊपर के गुणस्थानों में नहीं गये हुए, नहीं जाने वाले और जाकर पतित हुए जीव होते हैं । इसी प्रकार जिन प्रकृतियों का जघन्य रसबंधादि ऊपर के गुणस्थानों में होता हो, उनके जघन्य भंग में सादि आदि चार भंग घटित होते हैं । किन्तु जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट रसबंधादि पहले गुणस्थान में होता हो, उनके अनुत्कृष्ट विकल्प पर सादि और सांत ये दो भंग घटित होते हैं क्योंकि मिथ्यात्वगुणस्थान में एक के बाद दूसरा इस क्रम से उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट दोनों भंग संभव हैं । इसी प्रकार जिन प्रकृतियों का जघन्य रसबंधादि पहले गुणस्थान में होता हो उनके अजघन्य भंग पर सादि और सांत ये दो भंग घटित होते हैं । जघन्य और उत्कृष्ट अमुक समय ही होने से उन पर तो सादि और सांत ये दो ही भंग घट सकते हैं अन्य
नहीं ।
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