Book Title: Panchsangraha Part 05
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६
गाथार्थ-वेदनीय और आयु के बिना शेष छह कर्मों का जहाँ तक उदय होता है, वहाँ तक उनकी उदीरणा भी होती है तथा किसी भी कर्म की सत्ता में एक समयावलिका शेष रहे तब उदीरणा नहीं होती है, केवल उदय ही होता है ।
विशेषार्थ-गाथा में उदीरणाविषयक अपवाद का निर्देश किया है कि___वेदनीय और आयु के बिना शेष छह कर्मों का जहाँ तक उदय होता है, वहाँ तक उनकी उदीरणा होती है-'जावुदयो ताव उदीरणा वि।' वेदनीय और आयु कर्म का प्रमत्तगुणस्थान पर्यन्त उदय होता है वहाँ तक उनकी उदीरणा प्रवर्तमान होती है और प्रमत्तगुणस्थान से आगे वेदनीय और आयु कर्म की उदीरणा रुक जाने पर देशोन पूर्व कोटि पर्यन्त केवल उदय ही होता है तथा सभी कर्मों की अद्धावलिका (एक समयावलिका) शेष रहने पर उदय प्रवर्तमान होता है किन्तु उदीरणा नहीं होती है । अर्थात् एक आवलिका जितने काल में भोगने योग्य दलिक जब सत्ता में शेष रहें तब उदय प्रवर्तमान होने पर भी उदीरणा नहीं होती है । जिसका स्पप्टीकरण इस प्रकार है
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय, मोहनीय और आयुकर्म का अपनो-अपनी पर्यन्तावालिका में उदय होता है, किन्तु उदीरणा नहीं होती है । क्योंकि उदीरणा का लक्षण यह है-उदय-समय से आरम्भ
१ यहां देशोनपूर्व को टिकाल सयोगिकेवलिगुणस्थान के काल की अपेक्षा
जानना चाहिए। २ अद्धावलिका-आवलिका यानी पंक्ति श्रेणी। श्रेणी प्रायः प्रत्येक
पदार्थ की हो सकती है । परन्तु यहां काल की पंक्ति लेना है। जिससे अदा शब्द को ग्रहण किया है । अतः अद्धा काल की आवलिका श्रेणी को अद्धावलिका अर्थात् प्रतिनियत संख्या वाली आवलिका के समय प्रमाण जो समय रचना हो, उसे अद्धावलिका कहते हैं ।
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