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( १० ) प्रतिक्रमण का मतलब पीछे लौटना है-एक स्थिति में जा कर फिर मूल स्थिति को प्राप्त करना प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण शब्द की इस सामान्य व्याख्या के अनुसार ऊपर बतलाई हुई व्याख्या के विरुद्ध अर्थात् अशुभ योग से हट कर शुभ योग को प्राप्त करने के बाद फिर से अशुभ योग को प्राप्त करना यह भी प्रतिक्रमण कहा जा सकता है । अत एव यद्यपि प्रतिक्रमण के (१) प्रशस्त और (२) अप्रशस्त, ये दो भेद किये जाते हैं (आ०, पृ० ५७२), तो भी 'आवश्यकक्रिया' में जिस प्रतिक्रमण का समावेश है, वह अप्रशस्त नहीं किन्तु प्रशस्त ही है ; क्योंकि इस जगह अन्तर्दृष्टि वाले-आध्यात्मिक पुरुषों की ही अवश्य-क्रिया का विचार किया जाता है।
(१) दैवसिक, (२) रात्रिक, (३) पाक्षिक, (४) चातुर्मासिक और (५) सांवत्सरिक, ये प्रतिक्रमण के पाँच भेद बहुत प्राचीन तथा शास्त्र-संमत हैं; क्योंकि इन का उल्लेख श्रीभद्रबाहुस्वामी तक करते हैं (आ०-नि०, गा० १२४७)। काल-भेद से तीन प्रकार का प्रतिक्रमण भी बतलाया है । (१) भूत काल में लगे हुए दोषों की आलोचना करना, (२) संवर करके वर्तमान काल के दोषों से बचना और (३) प्रत्याख्यान द्वारा भविष्यत् दोषों को रोकना प्रतिक्रमण है (आ०, पृ० ५५१)।
___ उत्तरोत्तर आत्मा के विशेष शुद्ध स्वरूप में स्थित होने की इच्छा करने वाले अधिकारिओं को यह भी जानना चाहिये कि प्रतिक्रमण किस-किस का करना चाहिये:-(१) मिथ्यात्व,
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