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( २६ ) पढ़ना चाहिये। यही कारण है कि जब सभा को या किसी एक व्यक्ति को 'पच्चक्खाण' कराया जाता है, तब ऐसा सूत्र पढ़ा जाता है कि जिस में अनेक 'पच्चक्खाणों' का समावेश हो जाता है, जिस से सभी अधिकारी अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार 'पच्चक्खाण' कर लेते हैं।
इस दृष्टि से यह कहना पड़ता है कि 'वंदित्तु' सूत्र अखण्डितरूप से पढ़ना न्याय व शास्त्र-संगत है । रही अतिचारसंशोधन में विवेक करने की बात, सो उस को विवेकी अधिकारी खुशी से कर सकता है। इस में प्रथा बाधक नहीं है। 'प्रतिक्रमण' पर होने वाले आक्षेप और उन का परिहार ।
'आवश्यक-क्रिया' की उपयोगिता तथा महत्ता नहीं समझने वाले अनेक लोग उस पर आक्षेप किया करते हैं। वे आक्षेप मुख्य चार हैं । पहला समय का, दूसरा अर्थ-ज्ञान का, तीसरा भाषा को आर चौथा अरुचि का ।
(१) कुछ लोग कहते हैं कि 'आवश्यक-क्रिया' इतनी लम्बी और बेसमय की है कि उस में फँस जाने से घूमना, फिरना और विश्रान्ति करना कुछ भी नहीं होता । इस से स्वास्थ्य और स्वतन्त्रता में बाधा पड़ती है । इस लिये 'आवश्यक-क्रिया'. में फँसने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा कहने वालों को समझना चाहिये कि साधारण लोग प्रमादशील और कर्त्तव्य-ज्ञान से शून्य होते हैं । इस लिये जब उन को कोई खास कर्त्तव्य करने को कहा जाता है, तब वे दूसरे कर्तव्य की उपयोगिता व महचा
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