Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 489
________________ परिशिष्ट । काउस्सग्ग पारे और खड़े-ही-खड़े तीन नमुक्कार गिन कर बैठ जाय ! बाद तीन नमुक्कार, तीन 'करेमि भंते' पढ़ कर 'इच्छामि ठामि पडिक्कमिउं जो मे पक्खियो०' कहके 'वंदित्तु' सूत्र पढ़े। बाद खमासमण-पूर्वक 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् मूलगुण-उत्तरगुण-विशुद्धि-निमित्तं काउस्सग्गं करूँ? ' कहे । गुरु जब 'करेह' कहे, तब 'इच्छ करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी, अन्नत्था कह कर पाक्षिक में बारह, चातुर्मासिक में बीस और सांवत्सरिक में चालीस लोगस्स का काउस्सग्ग करे। फिर नमुक्कार-पूर्वक काउस्सग्ग पारके लोगस्स पढ़े और बैठ जाय। पीछे मुहपत्ति पडिलेहन करके दो वन्दना दे और 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् समाप्ति खामणेणं अब्भुहिओमि अभिंतर पक्खियं खामेउँ?' कहे। गुरु जब 'खामेह' कहे, तब 'इच्छं,खामेमि पक्वियं जं किंचि' कहे। बाद 'इच्छाकरेण संदिसह भगवन् पक्खिय खामणा खामुं' कहे और गुरु जब 'पुण्णवंतो'तथा चार खमासमण-पूर्वक तीन नमुक्कार गिन कर 'पक्खिय-समाप्ति खामणा खामेह' कहे, तब एक -खमासमण-पूर्वक तीन नमुक्कार पड़े, इस तरह चार बार करे।गुरु के 'नित्थारगपारगा होह' कहने के बाद 'इच्छं,इच्छामो अणुसहि कहे। इस के बाद गुरु जब कहे कि 'पुण्णवंतो' पक्खिय के निमित्त एक उपवास, दो आयंबिल, तीन निवि, चार एकासन, दो हजार सज्झाय करी एक उपवास की पेठ पूरनी और 'पक्खिय' के १-~चउमासिय में इस से दूना अर्थात् दो उपवास, चार आयंबिल, छह निवि, आठ एकासन और चार हजार सज्झाय । संवच्छरिय में उस से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526