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प्रतिक्रमण सूत्र ।
* भयविन्भल रणझणिरदसण थरहरियसरीरय,
तरलियनयण विसुन्न सुन्न गग्गरगिर करुणय । तइ सहसत्ति सरंत हुंति नर नासियगुरुदर, मह विज्झवि सज्झसइ पास भयपंजरकुंजर ॥१०॥
अन्वयार्थ-'भयविन्भल' [जो] भय से व्याकुलित हों, रणझणिरदसण' [जिन के] दाँत युद्ध में टूट गये हों, थरहरियसरीरय' शरीर थर-थर काँपता हो, 'तरलियनयण' आँखें फटीसी हो गई हो, 'विसुन्न' जो खेद-खिन्न हों, 'सुन्न' अचेत हो गये हो, 'गग्गरगिर' गद्गद बोली से बोलते हों [और] 'करुणयः दीन हों; 'नर' [ऐसे भी ] आदमी 'तइ सरंत' तुम्हारे स्मरण करते ही 'सहसचि' एक ही दम 'नासियगुरुदर हुंति' नष्ट-व्याधि हो जाते हैं। भयपंजरकुंजर पास' भयरूप पिंजरे को तोड़ने के लिये हाथी-सदृश हे पाश्व ! 'मह सज्झसइ विज्झवि मेरे भया को नाशो ॥१०॥
भावार्थ-हे पार्श्व प्रभो! तुम्हारे स्मरण करते ही तत्काल दुःखित प्राणियों के दुःख दूर हो जाते हैं। जैसेः-जो डर से आकुलित हो, युद्ध में जिस के दाँत आदि अङ्ग टूट गये हों, शरीर थर-थर काँपने लग गया हो, आँखें फटसी हो गई हों, जो क्षीण हो गया हो,अचेत हो गया हो या हिचक-हिचक कर बोलने लग गया हो; इसी लिये तुम 'भयपञ्जरकुञ्जर' हो। अतः मेरे भी भयों का विध्वंस करो ॥१०॥
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* भयविहला रणझणदशनाः थरहरच्छरीरकाः,, तरलितनयनाः विषण्णा: शून्याः गद्दगिरः कारुणिकाः। स्वां सहसैव स्मरन्तो भवान्त नरा नाशितगुरुदराः,
मम विध्यापय साध्वसानि पार्श्व भयफअरकुञ्जर ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org