Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 499
________________ परीिशष्ट । * बहुविहुवन्नु अवन्नु सुन्नु वनिउ छप्पन्निहि, मुक्खधम्मकामत्थकाम नर नियनियसस्थिहिं । जं ज्झायहि बहुदरिसणस्थ बहुनामपसिद्धउ, सो जोइयमणकमलभसल सुहु पास पवद्धउ ॥९॥ अन्वयार्थ—जो] 'छप्पन्निहिं' पण्डितों द्वारा 'नियनियसथिहि अपने-अपने शास्त्रों में 'बहुविहुवन्नु विविध वर्ण वाला, 'अवन्नु अवर्ण तथा] 'सुन्नु' शून्य 'वन्निउ' कहा गया है, [अत एव 'बहुनामपसिद्धउ' अनेक नामों से मशहूर है; जोजिस का 'मुक्खधम्मकामत्थकाम' मोक्ष, धर्म, काम और अर्थ को चाहने वाले 'बहुदरिसणत्थ नर' अनेक दार्शनिक मनुष्य 'ज्झायहि' ध्यान करते हैं; 'से' वह 'जोइयमणकमलभसल पास' योगियों के दिलों में भौरे की तरह रहने वाला पार्श्व 'सुहु पवद्धा' सुख बढ़ावे ॥९॥ भावार्थ-हे पार्श्व ! अपने-अपने शास्त्रों में किसी ने आप को 'नानारूपधारी, किसी ने 'निराकार' और किसी ने 'शून्य' बतलाया है ; इसी लिये आप के विष्णु, महेश, बुद्ध आदि अनेक नाम हैं। और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चाहने वाले अनेक दार्शनिक आप का ध्यान करते हैं; इसी लिये आप 'योगि-मनःकमल-मसल' हैं । आप मेरे सुख की वृद्धि करें ॥९॥ बहुविधवाऽवर्णः शून्यो वर्णितः पण्डितः, .. मोक्षधर्मकामार्थकामा नरा निजनिजशास्त्रेषु । यं ध्यायन्ति बहुदर्शनस्था बहुनामप्रसिद्धं, स योगिमन:कमलभसलः सुखं पार्श्वः प्रवर्दयतु ॥९॥ .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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