Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 498
________________ ३६ प्रतिक्रमण सूत्र । * जय जोइयमणकमलभसल भयपंजरकुंजर, तिहुअणजणआणंदचंद भुवणत्तयदिणयर । जय मइइणिवारिवाह जयजतुपियामह, थंभणयट्ठिय पासनाह नाहत्तण कुण मह ॥ ८ ॥ अन्वयार्थ- 'जोइयमणकमलभसल' हे योगियों के मनोरूप कमलों के लिये भौरे, 'भयपंजरकुंजर' हे भयरूप पिंजर के लिये हाथी, 'तिहुअणजण आनंदचंद' हे तीनों लोकों के प्राणियों को आनन्द दैने के लिये चन्द्र [ और ] 'भुवणत्तयदिणयर' हे तीन जगत् के सूर्य 'जय' [ तुम्हारी ] जय हो ; 'मइमेइणिवारिवाह' हे मतिरूप पृथ्वी के लिये मेघ 'जयजतुपियामह' हे जगत् के प्राणियों के पितामह ! 'जय' [तुम्हारी] जय हो ; ' थंभणयडिय पासनाह' हे स्तम्भनकपुर में विराजमान पार्श्वनाथ ! 'मह नाहत्तण कुण' मुझे सनाथ करो ॥८॥ भावार्थ - हे खमाच में विराजमान पार्श्वनाथ ! तुम कमल पर भौरे की तरह योगियों के मन में बसे हुए हो; हाथी की तरह भयरूप पिंजरे को तोड़ने वाले हो; चन्द्रमा की तरह तीनों ora को आनन्द उपजाने वाले हो; सूर्य की तरह तीनों जगत् का अज्ञान- अन्धकार नष्ट करने वाले हो; मेघ की तरह मतिरूप भूमि को सरस बनाने वाले हो और पितामह की तरह प्राणियों की परवरिश करने वाले हो, इस लिये मेरे भी तुम अब स्वामी बनो ८ + जय योगिमनः कमलभसल भयपिअरकुजर, त्रिभुवनजनानन्दचन्द्र भुवनत्रयदिनकर । जय मतिमेदिनीवारिवाह जगज्जन्तुपितामह, स्तम्भनकास्थित पार्श्वनाथ नाथत्वं कुरु मम ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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