Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 510
________________ ૪૮ प्रतिक्रमण सूत्र | * तुहु सामिउ तुहु मायबपु तुहु मित्त पियंकरु, तुहुँ गइ तुहु मह तुहुजि ताणु तुहु गुरु खेमंकरु । हउँ दुहभरभारिउ वराउ राउ निब्भग्गह, लीणउ तुह कमकमलसरणु जिण पालहि चंगह ||२०|| अन्वयार्थ - 'तुहु सामिउ' तुम मालिक हो, 'तुहु मायबप्पु' तुम माई-बाप हो, 'तुहु पियंकरु मित्त' तुम प्यारे मित्र हो, 'तुहु गइ' तुम गति हो, 'तुहु मइ' तुम मति हो, 'तुहु खेमंकरु गुरु' तुम कल्याणकारी गुरु हो [ और ] 'तुहुजि ताणु तुम ही रक्षक हो । 'ऊँ मैं 'दुहभरभारिउ' दुःखों के बोझ से दबा हुआ हूँ, 'वरा' क्षुद्र हूँ [और ] 'चंगह निब्भग्गह राउ' उत्कृष्ट भाग्यहीनों का राजा हूँ; [परन्तु] 'तुह' तुम्हारे 'कमकमलसरणु लीनउ' चरण-कमल की शरण में आ गया हूँ [अतः ] 'जिन' हे जिन ! 'पालहि ' [मेरी] रक्षा करो ॥ २० ॥ भावार्थ - हे जिन ! तुम मालिक हो, तुम मा-बाप हो, तुम प्यारे मित्र हो, तुम से सुगति और सुमति प्राप्त होती हैं, तुम रक्षक हो और तुम ही कल्याण करने वाले गुरु हो । मैं दुःखों से पीड़ित हूँ और बड़े से बड़े हतभाग्यों में शिरोमणि हूँ; पर तुम्हारे चरण कमलों की शरण में आ पड़ा हूँ; इस लिये मेरी रक्षा करो ॥२०॥ * त्वं स्वामी त्वं मातृपित्रा त्वं मित्रं प्रियंकरः, त्वं गतिस्त्वं मतिस्त्वमेव त्राणं त्वं गुरुः क्षेमंकरः । अहं दुःखभरभरितो वराकः राजा निर्भाग्यानां, लनिस्तव क्रमकमलशरणं जिन पालय चनानाम् ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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