Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 490
________________ २८ प्रतिक्रमण सूत्र । स्थान में 'देवसिया कहना', तब जिन्हों ने तप कर लिया हो, वे 'पइट्टिय' कहें और जिन्हों ने तप न किया हो वे 'तहत्ति' कहें। पीछे दो वन्दना देकर 'अब्भुडिओमि अभितर देवसियं खामेऊँ?' पढ़े । बाद दो वन्दना दे कर 'आयरिय उवज्झाए' पढ़े। इस के आगे सब विधि दैवसिक-प्रतिक्रमण की तरह है। सिर्फ इतना विशेष है कि पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में श्रतदेवता, क्षेत्रदेवता और भुवनदेवता के आराधन के निमित्त अलगअलग तीन बार काउस्सग्ग करे और प्रत्येक काउस्सग्ग को पार कर अनुक्रम से 'कमलदल०, ज्ञानादिगुणयुतानां० और यस्याः क्षेत्रं०' रवातेयाँ पढ़े। इस के अनन्तर बड़ा स्तवन 'अजितशान्ति' और छोटा स्तवन ‘उवसग्गहरं०' पढ़े । तथा प्रतिक्रमण पूर्ण होने के बाद गुरु से आज्ञा ले कर नमोऽर्हत्०' पढे। फिर एक श्रावक बड़ी 'शान्ति' पढ़े और बाकी के सब सुनें । जिन्हों ने रात्रि-पौषध न किया हो, वे पौषध और सामायिक पार करके 'शान्ति' सुनें। [जय तिहुअण स्तोत्र । * जय तिहुअणवरकप्परुक्ख जय जिणधनवरि , जय तिहुअणकल्लाणकोस दुरिअक्करिकेसरि । तिगुना अर्थात तीन उपवास, छह आयांबल, नौ निवि, बारह एकासन और छह हजार सज्झाय' ऐसा बोलते हैं। * जय त्रिभुवनवरकल्पवृक्ष जय जिनधन्वन्तरे, जय त्रिभुवनकल्याणकोष दुरितकरिकेसरिन् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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