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( ४८ ) भाष्य लिखा, जो विशेषावश्यक भाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। यह बहुत बड़ा आकर ग्रन्थ है । इस भाष्य के ऊपर उन्हों ने स्वयं संस्कृत-टीका लिखी है, जो उपलब्ध नहीं है । कोट्याचार्य, जिन का दूसरा नाम शीलाङ्क है और जो आचाराङ्ग तथा सूत्रकृताङ्ग के टीकाकार हैं, उन्हों ने भी उक्त विशेषावश्यक भाष्य पर टीका लिखी है। श्रीहेमचन्द्र मलधारी का भी उक्त भाष्य पर बहुत गम्भीर और विशद टीका है ।
'आवश्यक' और श्वेताम्बर-दिगम्बर संप्रदाय । ___ 'आवश्यक-क्रिया' जैनत्व का प्रधान अङ्ग है । इस लिये उस क्रिया का तथा उस क्रिया के सूचक 'आवश्यक-सूत्र' का जैनसमाज की स्वेताम्बर-दिगम्बर, इन दो शाखाओंमें पाया जाना स्वाभाविक है। स्वेताम्बर-संप्रदाय में साधु-परम्परा अविच्छिन्न चलते रहने के कारण साधु-श्रावक-दोनों की 'आवश्यक-क्रिया तथा 'आवश्यक-सूत्र' अभी तक मौलिकरूप में पाये जाते हैं। इस के विपरीत दिगम्बर-संप्रदाय में साधु-परंपरा विरल और विच्छिन्न हो जाने के कारण साधुसंबन्धी 'आवश्यक-किया' तो लुप्तप्राय है ही, पर उस के साथ-साथ उस संप्रदाय में श्रावकसंबन्धी 'आवश्यक-किया' भी बहुत अंशों में विरल हो गई है। अत एव दिगम्बर-संप्रदाय के साहित्य में 'आवश्क-सूप' का मौलिकरूप में संपूर्णतया न पाया जाना कोई अचरज की बात नहीं।
फिर भी उस के साहित्य में एक 'मूलाचार'-नामक प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध है, जिस में साधुओं के आचारों का वर्णन है ।
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