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प्रतिक्रमण सूत्र ।
को जला देती है । वह श्रीनेमिनाथ भगवान् तुम्हारे अमंगल
नष्ट करे ||२४||
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कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥ २५॥ अन्वयार्थ – स्वोचितं' अपने अपने योग्य कर्म' कार्य 'कुर्वति' करते हुए [ ऐसे ] कमठे' कमठ नामक दैत्य पर 'च' और 'धरणेन्द्रे' धरणेन्द्र पर 'तुल्य मनोवृत्तिः' समान भाव वाला 'पार्श्वनाथः प्रभुः' पार्श्वनाथ भगवान् 'वः' तुम्हारी 'श्रिये अस्तु ' संपत्ति के लिये हो ॥ २५ ॥
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भावार्थ — अपने अपने स्वभाव के अनुसार प्रवृत्ति करने बाले कमठ नामक दैत्य और धरणेन्द्र नामक असुरकुमार अर्थात् इन बैरी और सेवक दोनों पर जिस की मनोवृत्ति समान रही, वह श्री पार्श्वनाथ भगवान् तुम्हारी संपति का कारण हो ॥ २५ ॥
श्रीमते वीरनाथाय, सनाथायाद्भुतश्रिया । महानन्दसरोराज, मरालाया है ते नमः ॥ २६ ॥ अन्वयार्थ – 'अद्भुतश्रिया' अचरज पैदा करने वाली विभूति से 'सनाथाय' युक्त [ और ] 'महानन्द' महान् आनन्दरूप 'सरः सरोवर के 'राजमरालाय' राजहंस [ ऐसे ] 'श्रीमते ' श्रीमान् 'वीरनाथाय' महावीर 'अर्हते' अरिहन्त को 'नमः' नमस्कार हो || २६ ॥
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