________________
प्रतिक्रमण सूत्र |
सामायिकव्रतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष - दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचनकाया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
३१६
दसवें देशावकाशिकव्रत के पाँच अतिचार :" आणवणे पेसवणे ० " ॥ २८ ॥
आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाई, रूवाणुवाई,. बहिया पुग्गलपक्खेवे, नियमित भूमि में बाहिर से वस्तु मँगवाई। अपने पास से अन्यत्र भिजवाई | खुंखारा आदि शब्द करके, रूप दिखाके या कंकर आदि फेंक कर अपना होना मालूम कराया । इत्यादि दसवें देशावका शिकव्रतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष- दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छामि दुक्कडं । ग्यारहवें पौषधोपवासव्रत के पाँच अतिचार :-- " संथारुच्चारविधि ०" ॥२९॥
अप्पाडलेहिअ, दुष्पडिलेहिअ, सिज्जासंथारए । अप्पडिलेहिय, दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवण भूमि । पौषध ले कर सोने की जगह बिना पूँजे प्रमार्जे सोया । स्थंडिल आदि की भूमि भले प्रकार शोधी नहीं । लघु नीति, बड़ी नीति करने या परठने के समय 'अणुजाणह जस्सुग्गह' न कहा । परठे बाद तीन चार 'वोसिरे' न कहा । जिनमन्दिर और उपाश्रय में
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org