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विधियाँ [२] चातुर्मासिक प्रतिक्रमण की विधि । चउमासी प्रतिक्रमण में कुल विधि पक्खी प्रतिक्रमण की तरह ही समझना चाहिये। फर्क इतना ही है कि बारह लोगस्स के स्थान में बीस लोगस्स का कायोत्सर्ग करे और जहाँ-जहाँ 'पक्खिय' शब्द आया हो, वहाँ-वहाँ 'चउमासिय' शब्द कहे । चउमासी तप की जगह दो उपवास,चार आयंबिल, छह निवि, आठ एकासना, सोलह बिआसना और चार हजार सज्झाय कहे।
सांवत्सरिक-प्रतिक्रमण की विधि । इस में भी कुल विधि पूर्वोक्त प्रकार समझना चाहिये। फर्क इतना ही है कि काउस्सग्ग चालीस लोगस्स और एक नवकार का करे। 'पक्खिया की जगह 'संवच्छरियः शब्द कहे । तप 'एक अट्ठम, तीन उपवास, छह आयंबिल, नौ निवि, बारह एकासना, चौवीस बिआसना सज्झाय छह हजार' कहे ।
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