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प्रतिक्रमण सूत्र |
निरुद्धसंसारविहारकारि, दुरन्तभावारिगणा निकामम् । निरन्तरं केवलिसत्तमा वो, भयावहं मोहभरं हरन्तु ॥२॥ भावार्थ - संसार भ्रमण के कारण और बुरे परिणाम को करने वाले ऐसे कषाय आदि भीतरी शत्रुओं को जिन्हों ने बिल्कुल नष्ट किया है, वे केवलज्ञानी महापुरुष, तुम्हारे संसार के कारणभूत मोह-बल को निरन्तर दूर करें ||२||
संदेहकारिकुनयागमरूढगूढ, संमोहपङ्कहरणामलवारिपूरम् । संसारसागरसमुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिद्धिकरं नमामि|३|
भावार्थ-सन्देह पैदा करने वाले एकान्तवाद के शास्त्रों के परिचय से उत्पन्न, ऐसा जो भ्रमरूप जटिल कीचड़ उस को दूर करने के लिये निर्मल जल प्रवाह के सदृश और संसार - समुद्र से पार होने के लिये प्रचण्ड नौका के समान, ऐसे परमसिद्धिदायक महावीर - सिद्धान्त अर्थात् अनेकान्तवाद को मैं नमन करता हूँ ॥ ३ ॥
परिमलभरलोभालीढलोलालिमाला, -
वरकमलनिवासे हारनीहारहासे । अविरलभवकारागारविच्छित्तिकारं,
कुरु कमलकरे मे मङ्गलं देवि सारम् ||४||
भावार्थ -- उत्कट सुगन्ध के लोभ से खिंच कर आये हुए
जो चपल मैंरे, उन से युक्त ऐसे सुन्दर कमल पर निवास करने
बाली, हार तथा बरफ के सदृश श्वेत, हास्य-युक्त और हाथ में
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