Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 471
________________ परिशिष्ट । अर्थ-हे महायशस्विन् ! हे महाभाग्य ! हे इष्ट शुभा फल के दायक ! हे संपूर्ण तत्वों के जानकार ! हे प्रधान गौरवशाली गुरो ! हे दुःखित प्राणियों के रक्षक ! तेरी जय हो, तेरी जय हो और वार-बार जय हो। हे भव्यों के भयानक संसार को नाश करने के लिये अस्त्र समान ! हे अनन्तानन्त गुणों के धारक ! भगवन् स्तम्भन पार्श्वनाथ ! तुझ को तीनों संध्याओं के समय नमस्कार हो ॥१॥ [ श्रीमहावीर जिन की स्तुति । ] मृरति मन मोहन, कंचन कोमल काय । सिद्धारथ नन्दन, त्रिशला देवी माय ।। मृग नायक लंछन, सात हाथ तनु मान । दिन दिन सुखदायक, स्वामी श्रीवर्धमान ॥१॥ (२) सुर नर किन्नर, वंदित पद अरविंद । कामित भर पूरण, अभिनव सुरतरु कंद ।। भवियणने तारे, प्रवहण सम निशदीस । चोबीस जिनवर, प्रणD बिसवा बीस ॥१॥ अरथें करि आगम, भांख्या श्रीभगवंत । ___गणधरने Dथ्या, गुणनिधि ज्ञान अनन्त । सुर गुरु पण महिमा, कहि न सके एकान्त । Jain Education in समरूँ सुखसायर, मन शुद्ध सूत्र सिद्धान्त ॥१॥

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