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प्रतिक्रमण सूत्र ।
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[ श्रीआदिनाथ का चैत्य-वन्दन । ] जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पञ्चम गति गामी । जय जय करुणा शान्त दान्त, भवि जन हितकामी ॥ जय जय इन्द नरिन्द वृन्द, सेवित सिरनामी । जय जय अतिशयानन्तवन्त, अन्तर्गतजामी ॥ १ ॥ [श्रीसीमन्धर स्वामी का चैत्य - वन्दन । ] पूरब विदेह विराजता ए, श्रीसीमन्धर स्वाम । त्रिकरणशुद्ध त्रिहुं काल में, नित प्रति करूं प्रणाम || १ || [ श्रीसिद्धाचल का चैत्य वन्दन । ]
जय जय नाभि नरेन्द, नन्द सिद्धाचल मण्डण । जय जय प्रथम जिणन्द चन्द, भव दुःख विहंडण || जय जय साधु सुरिन्द बिन्द, वन्दिय परमेसुर । जय जय जगदानन्द कन्द, श्री ऋषभ जिणेसुर || अमृत सम जिनधर्मनो ए, दायक जगमें जाण । तुझ पद पङ्कज प्रीति घर, निशि दिन नमत कल्याण ॥१॥
[ सामायिक तथा पौषध पारने की गाथा | ] भयवं दसनदो, सुदंसणो थूलभद्द वयरो य । सफलीकयगिहचाया, साहू एवंविहा हुंति ॥ १ ॥ भावार्थ - श्री दशार्णभद्र, सुदर्शन, स्थूलभद्र और वज्रस्वामी, ये चार, ज्ञानवान् महात्मा हुए और इन्हों ने गृहस्थाश्रम
+ भगवान् दशार्णभद्रस्सुदर्शनस्स्थूलभद्रो वज्रश्च ।
सफलीकृतगृहत्यागस्साधव एवंविधा भवन्ति ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only
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