Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 457
________________ विधियाँ [ २ ] । विधियाँ [२] | पाक्षिक-प्रतिक्रमण की विधि । । प्रथम वंदितु सूत्र तक तो दैवसिक-प्रतिक्रमण की तरह कुल विधि समझना चाहिये । `चैत्य-वन्दन में सकलाईत् ० और थुइयाँ स्नातस्या ० की कहे । पीछे ' इच्छामि० देवसिअ आलोइअ पाडेक्कंता, इच्छाकारेण० पक्खियमुहपति पाडलेहुँ ?, इच्छं' कह कर मुहपत्ति पाडलेहके द्वादशावर्त वन्दना दे । पीछे 'इच्छाकारेण ० संबुद्धा खामणेणं अब्भुट्ठिओमि अब्भिंतर- पक्खिअं खामेउँ ?, इच्छं, खामेमि पक्खिअं एगपक्खस्स पन्नरसम्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं जं किंचि अपत्तिअं ०' कहे। पीछे 'इच्छा' पक्खियं आलोउँ ?, इच्छं, आलोएमि जो मे पक्खिओ अहआरो कओ०' कह कर 'इच्छा० पक्खिय-अतिचार आलोउँ ?, इच्छं' कहे । पीछे अतिचार कहे। पीछे 'सव्वस्स वि पक्खिअ दुच्चितिभ दुब्भासिअ दुच्चिट्ठिअ इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, इच्छं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं, इच्छकारि भगवन् पसायकरी पक्खिय तप प्रसाद करो जी' कहे । पक्खय के बदले 'एक उपवास, दो आयंबिल, तीन निवि, चार एकासना, आठ बिआसना और दो हजार सज्झाय करी पट्ट पूरनी जी' कहे। फिर द्वादशावर्त वन्दन कर के 'इच्छा० पत्तेय खामणेण अब्भुटिओमि अभि तर- पक्खियं खामेउँ ?, इच्छं, खामि पक्खियं एगपक्वस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३६१

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