Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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प्रतिक्रमण सूत्र । नमीने उपज्यु केवलज्ञान, पांच कल्याणक अतिप्रधान । र तिथिनी महिमा बड़ी, माग० ॥३॥ पांच भरत ऐरक्त इम ही ज,पांच कल्याणक हुए तिम ही ज। पचासनी संख्या परगड़ी, माग० ॥४॥ अतीत अनागत गणतां एम, दोढ़ सो कल्याणक थाय तेम। रुण तिथि छे ए तिथि जे बड़ी, माग० ॥५॥ अनंत चोवासी इण परे गणो, लाभ अनंत उपवास तणो । (तिथि सहु शिर ए खड़ी, माग० ॥६॥ मौनपणे रह्या श्रीमल्लिनाथ, एक दिवस संयम व्रत साथ । मौनतणी परे व्रत इम बड़ी, माग० ॥७॥ आठ पहोरी पोसह लीजिए, चौविहाहार विधि| कीजिए। पण प्रमाद न कीजे घड़ी, माग० ॥८॥ वर्ष इग्यार कीजे उपवास, जाव जीव पण अधिक उल्लास। ए तिथि मोक्षतणी पाबड़ी, माग० ॥९॥ ऊजमणुं कीजे श्रीकार, ज्ञानोपगरण इग्यार इग्यार । करो काउस्सग्ग गुरुपाये पड़ी, माग० ॥१०॥ देहरे स्नात्र कीजिजे वली, पोथी पूजिजे मन रली । मुक्ति पुरी कीजे ढूंकड़ी, माग० ॥११॥ मौन अग्यारस मोटुं पर्व, आराध्यां सुख लहीये सर्व । व्रत पञ्चक्खाण करो आखड़ी, माग० ॥१२॥ जेसल सोल इक्यासी समे, कीधुं स्तवन सहु मन गमे । समयमन्दर' कहे दाहाड़ी, माग०.. ॥१३॥
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