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प्रतिक्रमण सूत्र ।
[श्रीअनन्तनाथ जिन का स्तवन।] अनंत जिनंदसु प्रीतड़ी, नीकी लागीहो अमृत रस जेम । अवर सरागी देवनी, विष सरखी हो सेवा करूं केम । अ० ॥१॥ जिम पदमनी मन पिउ वसे, निर्धनीया हो मन धनकी प्रीत । मधुकर केतकी मन वसे,जिम साजन हो विरही जन चित्त । अ०२ करसण मेघ आषाढ़ ज्यूं, निज वाछड़ हो सुरभि जिम प्रेम । साहिब अनंत जिनंदसुं, मुझ लागी हो भक्ति मन तेम । अ०॥३॥ प्रीति अनादिनी दुःख भरै', मैं कीधी हो पर पुद्गल संग । जगत भम्यो तिन प्रीतसं, मांगधारी हो नाच्यो नव २ रंग। अ. जिनको अपना जानीया, तिन दीधा हो छिनमें अति छेह । पर-जन केरी प्रीतटी, मैं देखी हो अंते निमनेह । अ० ॥५॥ मेरो नहीं कोई लगतमें, तुम छोड़ी हो जगमें जगदीश। प्रीत करूं अब कोनसुं, तूं त्राता हो मोने विमवा वीस । अ०॥६॥ 'आवमराम' तूं माहरो, मिर सेहरो हो हियडाना हार । दीनदयाल कृपा करो, मुझ वेगा हो अब पार उतार ॥अ०॥७॥
[श्रीमहावीर जिन का स्तवन । ] गिरुआ रे गुण तुमतणा, श्रीवर्धमान जिनराया रे । सुणतां श्रवणे अमी झरे, निर्मल थाये मोरी काया रे॥गि० ॥१॥ तुम गुण-गण गंगा-जले, हुँ झीली निर्मल थाऊं रे । अबरन धंधो आदर, निशि दिन तोरा गुग गाऊं रे ।।वि०॥२॥ झीच्या जे गंगा-जले, ते छिल्लर जल नवि पेमेरे । जे मालती फूले मोहिया, ते वावल जई नवि बसे रे ।। गि० ॥३॥
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