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प्रतिक्रमण सूत्र |
[ २ । ]
हम मगन भये प्रभु ध्यान में ।
विसर गई दुविधा तन मन की, अचिरासुत-गुन -गान में । ह० १ | हरि हर ब्रह्म पुरंदर की रिद्धि, आवत नांहीं कोउ मान में । चिदानंद की मौज मत्री है, समता रस के पान में । ह०२ | इतने दिन तू नाहीं पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में । अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभुगुन अखय खजान में । ह०३ । गई दीनता सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में । प्रभु-गुन- अनुभव के रस आगे, आवत नहीं कोउ मान में | ६०४ । जिन ही पाया तिन ही छिपाया, न कहे कोउ के कान में । ताली लागी जब अनुभव की तब जाने कोउ सान में । ह०५ | प्रभु-गुन अनुभव चंद्रहास ज्यों, सो तो न रहे म्यान में । 'वाचक जय' कहे मोह महा अरि, जीत लियो है मैदान में | ह०६ |
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[ ३ । ]
कथनी कथे सहु कोई, रहेणी अतिदुर्लभ होई ।
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शुक राम का नाम बखाने, नवि परमारथ तस जाने रे । या विध भणी वेद सुणावे, पण अकल कला नवि पावे | क० | १ | खटत्रीस प्रकार रसेोई, मुख गिनतां तृप्ति न होई रे । शिशु नाम नहीं तस लेवे, रस स्वादत अतिसुख लेवे । क० |२| चंदीजन कड़खा गावे, सुनी शूरा सीस कटावे रे | जब रुंड मुंडता भासे, सहु आगल चारण नासे | क० | ३ |
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