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प्रतिक्रमण सूत्र ।
( १ )
तप पूरे ऊजमणुं कीजे, लीजे नर भव लाह जी । जिनगृह- पड़िमा, स्वामी वत्सल, साधु-भक्ति उत्साह जी ॥ विमलेसर, चक्कसरी देवी, सान्निध्य कारी राजे जी । श्रीगुरु 'क्षमाविजय' सुपसाये, मुनि 'जिन' महिमा छाजे जी४
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[ पर्युषण पर्व की स्तुति । ] ( १ )
सत्तर भेदी जिन, पूजा रची ने, स्नात्र महोत्सव कीजे जी । ढोल ददामा, भेरी नफेरी, झल्लरी नाद सुणीजे जी ॥ वीर जिन आगल, भावना भावी, मानव भव फल लीजे जी । पर्व पजुसण, पूरव पूरव पुण्ये, आव्यां एम जाणीजे जी ॥१॥
( १ )
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मास पास वली, दसम दुवालस, चत्तारी अट्ठ कीजे जी । ऊपर वली दश, दोय करी ने, जिन चौवीस पूजीजे जी ॥ बड़ा कल्पनो, छट्ट करी ने, वीर वखाण सुणी जे जी । पड़वेने दिन, जन्म महोत्सव, धवल मंगल वरतीजे जी ॥२॥
( १ )
आठ दिवस लगे अमर पलावी, अट्ठमनो तप कीजे जी । नागकेतुनी परे, केवल लहीये, जो शुभ भावे रहीये जी || तेलाधर दिन, ॠण कल्याणक, गणधर बाद वदजे जी । पास नेमीसर, अंतर तीजे, रिषभ चरित्र सुणीजे जी ॥ ३ ॥
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