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प्रतिक्रमण सूत्र ।
गया, असइपोसणया, ये पाँच सामान्य, एवं कुल पंद्रह कर्मादान महा आरम्भ किये कराये करते को अच्छा समझा। श्वान, बिल्ली आदि पोषे पाले । महासावद्य पापकारी कठोर काम किया । इत्यादि सातवें भोगोपभोगत्रतसम्बन्धी कोई अतिचार पक्ष - दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छामि दुक्कडं । आठवें अनर्थदण्ड के पाँच अतिचार :"कंदप्पे कुक्कुइए ०" ॥२६॥
कन्दर्प — कामाधीन हो कर नट, विट, वेश्या आदिक से हास्य खेल क्रीडा कुतूहल किया । स्त्री पुरुष केहाव, भाव, रूप, शृङ्गारसंबन्धी वार्त्ता की । विषयरसपोषक कथा की । स्त्रीकथा, देशकथा, भक्तकथा, राजकथा, ये चार विकथा कीं । पराई भाँजगढ़ की । किसी की चुगलखोरी की । आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया । खांडा, कटार, कशि, कुल्हाडी, रथ, ऊखल, मूसल. अग्नि, चक्की, आदिक वस्तु दाक्षिण्यतावश किसी को माँगी दी । पापोपदेश दिया । अष्टमी, चतुर्दशी के दिन दलने पीसने का नियम तोड़ा। मूर्खता से असंबद्ध वाक्य बोला । प्रमादाचरण सेवन किया । धी, वैट, दूध, दही, गुड़, छाछ आदि का भाजन खुला रखा, उस में जीवादि का नाश हुआ। वासा मक्खन रखा और तपाया । न्हाते, धोते, दाँतन करते जीव-आकुलित मोरी में पानी डाला । झूले में झूला | जुआ खेला । नाटक आदि देखा । ढोर,
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