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प्रतिक्रमण सूत्र ।
देख मदद न की। दीन दुःखी की अनुकम्पा न की। इत्यादि बारहवें अतिथिसंविभागवतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छा मि दुक्कडं ।
संलेषणा के पाँच अतिचार:
"इहलोए परलोए०" ॥३३।। '. इहलोगासंसप्पओगे । परलोगासंसप्पओगे । जीवियासंसप्पओगे। मरणासंसप्पओगे। कामभोगासंसप्पओगे। धर्म के प्रभाव से इस लोकसंबन्धी राज ऋद्धि भोगादि की वाञ्छा की। परलोक में देव, देवेन्द्र, चक्रवर्ती आदि पदवी की इच्छा की। सुखी अवस्था में जीने की इच्छा की। दुःख आने पर मरने की वाञ्छा की। कामभोग की वाञ्छा की । इत्यादि संलेषणाव्रतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छा मि दुक्कडं ।।
तप-आचार के बारह भेदः-छह बाह्य, छह अभ्यन्तर। "अणसणमृणोअरिया०" ॥६॥
अनशन-शक्ति के होते हुए पर्वतिथि को उपवास आदि तप न किया । ऊनोदरी-दो चार ग्रास कम न खाये । वृत्तिसंक्षेपः--द्रव्य-खाने की वस्तुओं का संक्षेप न किया। रसविगय त्याग न किया । कायक्लेश-लेच आदि कष्ट न किया । सलीनता-अङ्गोपाङ्ग का संकोच न किया । पच्च
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