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पाक्षिक अतिचार ।
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संका कंख विगिच्छा० ॥६॥
शङ्का:-श्रीअरिहंत प्रभुके बल अतिशय ज्ञान लक्ष्मी गम्भीर्यादि गुण शाश्वती प्रतिमा चारित्रवान् के चारित्र में तथा जिनेश्वरदेव के वचन में संदेह किया। आकाङ्क्षाः -ब्रह्मा, विष्णु, महेश, क्षेत्रपाल, गरुड, गूगा, दिक्पाल, गोत्रदेवता, नवग्रहपूजा, गणेश, हनुमान, सुग्रीव, बाली, माता, मसानी, आदिक तथा देश, नगर, ग्राम, गोत्र के जुदे जुदे देवादिकों का प्रभाव देख कर शरीर में रोगातङ्क कष्टादि के आने पर इसलोक परलोक के लिये पूजा मानता की । बौद्ध, सांख्यादिक, सन्यासी, भगत, लिंगिये, जोगी, फकीर, पीर इत्यादि अन्य दर्शनियों के मन्त्र यन्त्र चमत्कार को देख कर विना परमार्थ जाने मोहित हुआ । कुशास्त्र पढ़ा । सुना। श्राद्ध, संवत्सरी, होली, राखडीपूनम-राखी, अजा एकम, प्रेत दूज, गौरी तीज, गणेश चौथ, नाग पञ्चमी, स्कन्द षष्ठी, झीलणा छठ, शील सप्तमी, दुर्गा अष्टमी,राम नौमी,विजया दशमी,व्रत एकादशी, वामन द्वादशी, वत्स द्वादशी, धन तेरस, अनन्त चौदश, शिवरात्रि, काली चौदस, अमावस्या, आदित्यवार, उत्तरायण याग भोगादि किये, कराये करते को भला माना। पीपल में पानी डाला डलवाया। कुआ, तालाव, नदी, द्रह, बावड़ी, समुद्र, कुण्ड ऊपर पुण्यनिमित्त स्नान तथा दान किया, कराया, अनुमोदन किया । ग्रहण, शनिश्चर, माघ मास, नवरात्रि का स्नान किया। नवरात्रि-व्रत किया। अज्ञानियों के माने हुए
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