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पाक्षिक अतिचार | उठाई । इत्यादि स्थूल अदत्तादानविरमणव्रतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष - दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छामि दुक्कडं । चोथे स्वदारासंतोष-परस्त्रीगमनविरमणव्रत के पाँच अतिचार :
"अप्परिगहिया इत्तर०" ॥१६॥
परस्त्री गमन किया । अविवाहिता कुमारी, विधवा, वेश्यादिक से गमन किया । अनङ्गक्रीडा की । काम आदि की विशेष जाग्रति की अभिलाषा से सराग वचन कहा। अष्टमी, चौदश आदि पर्वतिथि का नियम तोड़ा। स्त्री के अगोपाङ्ग देखे । तीव्र अभिलाषा की । कुविकल्प चिन्तन किया । पराये नाते जोड़े | गुड़डे गुड्डियों का विवाह किया । वा कराया । अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, स्वप्न, स्वप्नान्तर हुआ । कुस्वप्न आया । स्त्री, नट, विट, भाँड, वेश्यादिक से हास्य किया । स्वस्त्री में संतोष न किया । इत्यादि स्वदारा संतोष-परस्त्रीगमनविरमणव्रतसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष - दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते - अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छामि दुक्कडं ।
पाँचवें स्थूलपरिग्रह परिमाणबूत के पाँच अतिचार :"धणधन्नखित्तवत्थू०" ॥ १८॥
धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, सोना, चाँदी, वर्त्तन आदि; द्विपद- दास, दासी, नौकर; चतुष्पद--गौ, बैल, घोड़ा आदि
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