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बृहत् शान्ति ।
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और इस के बाद अपनी सुघोषा नामक घण्टा को बजवाता है । घण्टा के बजते ही अनेक सुर तथा असुर इकट्ठे हो जाते हैं । फिर उन सब सुर-असुरों के साथ वह इन्द्र जन्म-स्थान में आ कर विनयपूर्वक भावी अरिहन्त - उस बालक को उठा लेता है और सुमेरु पर्वत के शिखर पर जा कर जन्माभिषेक करके शान्ति की घोषणा करता है । इस कारण मैं भी भव्य जनों के साथ मिल कर स्नात्रपीठ--स्नान की चौकी पर स्नात्र करके शान्ति की घोषणा करता हूँ । क्योंकि सब कोई किये हुए कार्य का अनुकरण करते हैं और महाजन - बड़े लोग --शिष्ट जन- जिस मार्ग पर चले हों, वही औरों के लिये मार्ग बन जाता है । इस लिये सब कोई कान लगा कर अवश्य सुनिये स्वाहा ।
ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोक महितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः ।
अर्थ --ओं, यह दिन परम पवित्र है । सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीन लोक के नाथ, तीन लोक से पूजित, तीनों लोक के पूज्य, तीनों लोक का ऐश्वर्य धारण करने वाले और तीनों लोक में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले, ऐसे जो अरिहन्त भगवान् हैं, वे अत्यन्त प्रसन्न हों ।
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