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प्रतिक्रमण सूत्र |
ॐ ग्रहाश्चन्द्र-सूर्याङ्गारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनै (नी) श्वर - राहु-केतुसहिताः सलोकपालाः सोम-यम- वरुण-कुबेरवासवादित्य- स्कन्द (न्ध) विनायकोपेताः (विनायकाः ) ये चान्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्रदेवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां अक्षीणकोष्ठागारा (र) नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा ।
अर्थ-ओं, चन्द्र, सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, -राहु और केतु, ये नौ महाग्रह तथा अन्य सामान्य ग्रह, लोक`पाल, सोम, यम, वरुण, कुबेर, वासव (इन्द्र), आदित्य, स्कन्द और विनायक तथा जो दूसरे गाँव, शहर और क्षेत्र के देव आदि हैं, वे सब अत्यन्त प्रसन्न हों और राजा लोग अटूट खजाने तथा कोठार वाले बने रहें, स्वाहा ।
· ॐ पुत्र- मित्रभ्रातृ- कलत्र- सुहृत्-स्वजन-संबन्धिबन्धुवर्गसहिताः नित्यं चामोदप्रमोदकारिणः आस्मंश्च भूमण्डलाय - ( ले आय) तननिवासिसाधु-साध्वी श्रावक-श्राविकाणां रोगोपसर्गव्याधिदुःखदुर्भिक्ष दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु |
अर्थ -- ऑ, तुम लोग अपने-अपने पुत्र, मित्र, भाई, स्त्री, हितैषी, कुटुम्बी, रिश्तेदार और स्नेही - वर्गसहित हमेशा आमोदप्रमोद करने वाले खुश बने रहो । तथा इस भूमण्डल (पृथ्वी) पर अपनी-अपनी मर्यादा में निवास करने वाले जो साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाएँ हैं, उन के रोग, परीषह, व्याधि, दुःख, दुर्भिक्ष और मनोमालिन्य (विषाद) की उपशान्ति के लिये शान्ति हो ।
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