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प्रतिक्रमण सूत्र ।
'सुदिद्विसुरगणसहिओ' सम्यक्त्वी देवगणसहित 'संतिजिणचंदो' श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वर ‘संघस्स' संघ की [तथा] 'मज्झ वि' मेरी भी 'रक्खं रक्षा 'करेउ' करे ॥१२॥
भावार्थ-मुनियों में उत्तम ऐसे आचार्यों ने जिस का यशोगान किया है, वह शान्तिनाथ भगवान् तथा सम्यक्त्वधारी देव-समूह संघ की और मेरी रक्षा करे ॥१२॥ __ + इअ संतिनाहसम्म,-द्दिट्ठी रक्खं सरइ तिकालं जो।
सव्वोवद्दवरहिओ, स लहइ सुहसंपयं परमं ॥१३॥
अन्वयार्थ-'इअ' इस प्रकार 'रक्खं ' रक्षा के लिये 'संतिनाहसम्मदिट्ठी' शान्तिनाथ तथा सम्यग्दृष्टि को 'जो' जो 'तिकालं' तीनों काल 'सरह' स्मरण करता है, 'स' वह 'सव्वोवद्दवरहिओं' सब उपद्रवों से रहित हो कर 'परम परम 'सुहसंपर्य' सुख-सम्पत्ति को 'लहई' पाता है ॥१३॥
भावार्थ-जो मनुष्य सब तरह से रक्षण प्राप्त करने के लिये श्रीशान्तिनाथ भगवान् तथा सम्यक्त्वी देवों को उपर्युक्त रीति से सुबह, दुपहर और शाम तीनों काल याद करता है, वह सब प्रकार की बाधाओं से छूट कर सर्वोत्तम सुख पाता है ॥१३॥ " इति शान्तिनाथसम्यग्दृष्टी रक्षायै स्मरति त्रिकालं यः ।
सर्वोपद्रवरहितः स लभते सुखसंपदं परमम् ॥१३॥
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