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प्रतिक्रमण सूत्र । __ अर्थ- हे भव्य जनो, आप यह सब समयोपयोगी कथन सुनिये । जो आहेत (जैन) तीन जगत् के गुरु श्रीतीर्थङ्कर की जन्माभिषेक-यात्रा के विषय में भक्ति रखते हैं, उन सब महानुभावों को अरिहन्त, सिद्ध आदिके प्रभाव से शान्ति मिले जिस से कि आरोग्य, संपत्ति, धीरज और बुद्धि प्राप्त हो तथा क्लेशोंका नाश हो ॥१॥
भो भो भव्यलोका इह हि भरतैरावतविदेहसंभवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोषाधण्टाचालनानन्तरं सकलसुरासुरेन्द्रः सह समागत्य सविनयमहट्टारकं गृहीत्वा गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे विहितजन्माभिषेकः शान्तिमुद्घोषयति यथा ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा महाजनो येन गतः स पन्थाः इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नातं विधा जिgii] शान्तिमुद्घोषयामि तत्पूजायात्रास्नानादिमहोत्सवानन्तरनिति कृत्वा [इति] कर्ण दत्वा [निशाम्यताम्] निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा ।
अर्थ हे भव्य लोग इस लोक के अन्दर भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्र में पैदा होने वाले सभी तीर्थंकरों के जन्म के समय सौधर्म नामक प्रथम देवलोक के इन्द्र का आसन कम्पित होता है। इस से वह अवधिज्ञान द्वारा उपयोग लगा कर उस कम्पन का कारण, जो तीर्थंकर का जन्म है, उसे जान लेता है
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