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अजित - शान्ति स्तवन ।
पाप - मल को धो डाला है, जिन्हों ने सब भव्य लोगों को हित का रास्ता दिखाया है और जिन की सब लोगों ने अच्छी तरह स्तुति की है, वे पूज्य अजितनाथ तथा शान्तिनाथ प्रभु मुझ को मोक्ष सुख देवें ॥ ३२-३४ ॥
* एवं तवबलविडलं, धुअं मए अजिअसंतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गईं गयं सासयं विउलं ||३५|
(गाहा ।) अन्वयार्थ———‘तवबलविउलं' तप के बल से महानू, 'ववगय'कम्मरयमलं' कर्म-रज के मल से राहत, [ और ] ' सासयं' शाश्वती [तथा ] 'विउलं' विशाल [ ऐसी ] 'गई' गति को 'ग' प्राप्त [ ऐसे ] 'अजिअसंतिजिणजुअलं' अजितनाथ तथा शान्तिनाथ जिन-युगल 'का 'मए' मैं ने ' एवं ' इस प्रकार 'थुअं' स्तवन किया ||३५||
भावार्थ- - इस गाथा नामक छन्द में स्तवन का उपसंहार है । जिन का तपोबल अपरिमित है, जिन के सब कर्म नष्ट हुए हैं और जो शाश्वती तथा विशाल मोक्ष- गति को पाये हुए हैं, ऐसे श्री अजितनाथ तथा शान्तिनाथ जिनेश्वर का मैं ने इस प्रकार ... स्तवन किया || ३५ ॥
* एवं तपोबलविपुलं स्तुतं मयाऽजितशान्तिजिनयुगलम् । व्यपगतकर्मरजोमलं, गतिं गतं शाश्वतीं विपुलाम् ॥ ३५ ॥
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