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प्रतिक्रमण सूत्र । ___ भावार्थ-अष्टापद, गजपद, संमेतशिखर, गिरिनार, शलजय, मांडवगढ़, वैभारगिरि, सोनागिरि , आबू और चित्तौड़ बगैरः जो तीर्थ विख्यात हैं, उन पर प्रतिष्ठित ऐसे श्रीऋषभदेव आदि तीर्थङ्कर तुम्हारा मङ्गल करें ॥३३॥
५७-अजित-शान्ति स्तवन । * अजिअं जिअसवभयं, संतिं च पसंतसव्वगयपावं । 'जयगुरु संतिगुणकरे, दो वि जिणवरे पणिवयामि ॥१॥(गाहा)
__अन्वयार्थ-'जिअसव्वभयं' सब भय को जीते हुए 'अजिअं श्रीअजितनाथ 'च' और 'पसंतसव्वगयपावं' सब रोग
और पाप को शान्त किये हुए ‘संति' श्रीशान्तिनाथ [इन 'जयगुरु' जगत् के गुरु [तथा] 'संतिगुणकरे' उपशम गुण को काने वाले [ ऐसे ] 'दो वि' दोनों 'जिणवरे' जिनवरों को 'पणिवयामि' [मैं] नमस्कार करता हूँ ।। १ ।। ... . भावार्थ- इस छन्द का नाम गाथा है । इस में श्रीअजितनाथ और श्रीशान्तिनाथ दोनों की स्तुति है। - सब भयों को जीत लेने वाले अजितनाथ और सब रोग तथा पापों को शान्त कर देने वाले श्रीशान्तिनाथ, इन दोनों को मैं नमस्कार करता हूँ। ये दोनों तीर्थंकर जगत् के गुरु और शान्तिकारक हैं ॥ १ ॥ * अजितं. जितसर्वभयं, शान्ति च प्रशान्तसर्वगदपापम् ।
जगद्गुरू शान्तिगुणकरौ, द्वावपि जिनवरी प्रणिपतामि ॥१॥
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