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अजित-शान्ति स्तवन ।
किया है, जिन का सुन्दर रूप प्रीतिकारक होने से चतुर लोगों के मन को खींचने वाला है, जिन के शरीर से तेज प्रकट होता है, जिन्हों ने नेत्रों में काजल, ललाट में तिलक और गाल पर चित्रलेखा (कस्तूरी आदि सुगन्धित पदार्थों की चित्र-रचना) इत्यादि प्रकार के सुन्दर शृङ्गारों की विविध रचना करके. शरीर को अलंकृत किया है, ऐसी देवामनाओं ने भक्ति से सिर झुका कर जिस भगवान् के चरणों को सामान्य तथा विशेष रूप से वार वार वन्दन किया, उस मोह-विजयी और सब क्लेशों को दूर करने वाले अजितनाथ जिनेन्द्र को मैं बहुमानपूर्वक प्रणाम करता हूँ ॥२६-२९॥
x थुअवंदिअस्सा रािसगणदेवगणहिं. तो देववहुहिं पयओ पणमिअस्सा ।
जस्सजगुत्तमसासणअस्सा भत्तिवसागपिंडिअयाहिं, देववरच्छरसाबहुआहिं सुरवररइगुणपंडियाहिं ॥३०॥
(भासुरयं।)
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४ स्तुतवन्दितस्य ऋषिगणदेवगणैः, ततो देववधूभिः प्रयत: प्रणतस्य । जास्यजगदुत्तमशासनस्य भक्तिवशागतपिण्डितकाभिः, देववराप्सरोबहुकाभिः सुरवररतिगुणपण्डितकाभिः ॥३०॥
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