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इन्द्र- इन सब के
प्रतिक्रमण सूत्र |
द्वारा पूजित हुए द्वारा पूजित हुए हैं। मैं भी भावपूर्वक उन को
नमन करता हूँ ॥ ३० ॥
सर्वेषां वेधसामाद्य, - मादिमं परमेष्ठिनाम् । देवाधिदेवं सर्वज्ञं, श्रीवीरं प्रणिदध्महे ॥ ३१ ॥
अन्वयार्थ -- 'सर्वेषां ' सब' वेधसाम्' जानने वालों में 'आद्यम्' मुख्य [ तथा ] 'परमेष्ठिनाम्' परमोष्ठियों में 'आदिम' प्रथम [ और | 'देवाधिदेव' देवों के देव [ ऐसे ] 'सर्वज्ञ' सर्वज्ञ 'श्रीवीरं ' श्रीमहावीर का 'प्रणिदध्महे' [ हम ] ध्यान करते हैं ॥ ३१ ॥
भावार्थ- सब ज्ञाताओं में मुख्य, पाँचों परमेष्ठियों में प्रथम, देवों के भी देव और सर्वज्ञ, ऐसे श्रीवीर भगवान् का हम ध्यान करते हैं ।। ३१ ॥
'देवोऽनेकमवार्जितोर्जितमहापापप्रदीपानलो, देवः सिद्धिवधूविशालहृदयालङ्कारहारोपमः । देवोऽष्टादशदोषसिन्धुरघटानिर्भेदपश्चाननो,
भव्यानां विदधातु वाञ्छितफलं श्रीवीतरागो जिनः ||३२|| अन्वयार्थ - जो 'देवः' देव 'अनेक' बहुत 'भव' जन्मों में 'अर्जित' संचय किये गये [ और ] 'ऊर्जित' तीव्र [ ऐसे ] 'महापाप' महान् पापों को 'प्रदीप' जलाने के लिये 'अनलः ' अग्नि के समान है, [ और जो ] 'देव' देव 'सिद्धिवधू' मुक्तिरूप स्त्री के 'विशालहृदय' विशाल हृदय को 'अलङ्कार' शोभायमान करने के लिये 'हारोपमः ' हार के समान है, [ और जो ] 'देवः ' देव
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