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अजित - शान्ति स्तवन ।
२६१ वाला अर्थात् सेवित, 'चउदसवररयण' चौदह प्रधान रत्नों, 'नवमहानिहि' नव महानिधियों और 'चउसट्ठिसहस्सपवरजुवईण' चौंसठ हजार प्रधान युवतियों का 'सुंदरवई' सुन्दर पति, 'चुलसीइयगयरहसयसहस्स' चौरासी लाख घोड़े, हाथी और रथों का 'सामी' स्वामी, 'छन्नवइगामकोडिसामी छ्यानवे करोड़ गाँवों का स्वामी [ इस प्रकार ] 'जो' जो 'महप्पभावो' महाप्रभाव वाला [ऐसा ] 'भारहंमि' भरत क्षेत्र का 'भयवं' नाथ 'आसी' हुआ | ११|
'तं' उस 'संतिकरं ' शान्तिकारक, 'सव्वभया' सब भय से 'संतिएणं' मुक्त[ तथा ] 'संति' शान्ति वाले [ ऐसे ] 'संतिजिण ' शान्तिनाथ जिनवर की 'थुणामि' [ मैं ] स्तुति करता हूँ ; 'मे' मेरे लिये 'संति' शान्ति 'विहेउ' कीजिये ॥ १२ ॥
भावार्थ इन दो छन्दों में पहले का नाम वेष्टक और दूसरे का नाम रासानन्दित है । दोनों में सिर्फ श्रीशान्तिनाथ की स्तुति है ।
जो पहले तो कुरु देश की राजधानी हस्तिनापुर नगर का साधारण नरेश था, पर पीछे से जिस को चक्रवर्ती की महासमृद्धि प्राप्त हुई, अर्थात् जिस के अधिकार में बहत्तर हजार अच्छे अच्छे परा वाले नगरों तथा निगमों ( व्यापार के अड्डों ) वाला देश आया, बत्तीस हजार मुकुटधारी राजा जिस के अनुगामी हुए, चौदह श्रेष्ठ रत्न, नव महानिधि, चौंसठ हजार प्रधान युवतियाँ, चौरसी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ और छ्यानवे करोड़ गाँव ; इतना वैभव जिसे प्राप्त हुआ ।
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