________________
प्रतिक्रमण सूत्र ।
हो जाती है उससे गृहस्थ बच नहीं सकता, इस कारण वह संकल्प हिंसा का ही अर्थात् हड्डी, दांत, चमड़े या मांस के लिये अमुक) प्राणी को मारना चाहिये, ऐसे इरादे से हिंसा करने का ही पच्चक्खाण करता है । संकल्प पूर्वक की जाने वाली हिंसा भी सापेक्ष 1 निरपेक्षरूप से दो तरह की है। गृहस्थ को बैल, घोड़े आदि को चलाते समय या लड़के आदि को पढ़ाते समय कुछ हिंसा लग ही जाती है जो सापेक्ष है; इसलिये वह निरक्षेप अर्थात् जिसकी कोई भी जरूरत नहीं है ऐसी निरर्थक हिंसा का ही पच्चक्खाण करता है । यही स्थूल प्राणातिपात विरमणरूप प्रथम अणुव्रत है । इस व्रत में जो क्रियाएँ अतिचाररूप होने से त्यागने योग्य हैं उनकी इन दो गाथाओं में आलोचना है । वे अतिचार ये हैं:I
(१) मनुष्य, पशु, पक्षी आदि प्राणियों को चाबुक, लकड़ी आदि से पीटना, (२) उनको रस्सी आदि से बाँधना, (३) उन के नाक, कान आदि अगों को छेदना, (४) उन पर परिमाण - से अधिक बोझ लादना और (५) उनके खाने पीने में रुकावट पहुँचाना ॥९॥१०॥
[ दूसरे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ] * बीए अगुव्ययम्मि, परिथूलगलियवयणविरईओ 1 आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसँगणं ॥ ११ ॥
* द्वितीयेऽणुव्रते, परिस्थूलकालकविरतितः । आचरितमप्रशस्ते, ऽत्रप्रमादप्रसङ्गेन ॥ ११ ॥
-
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org