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१२४ प्रतिक्रमण सूत्र ।
* मम मंगलमारहता, सिद्धा साहू सुअं च धम्मो अ । ___ सम्मद्दिट्ठी देवा, दिंतु समाहिं च बोहिं च ॥४७॥
अन्वयार्थ---'अरिहन्ता' अरिहन्त 'सिद्धा' सिद्ध भगवान् 'साहू' साधु 'सुअं' श्रुत-शास्त्र 'च' और 'धम्मो' धर्म 'मम' मेरे लिये 'मंगलं' मङ्लभूत हैं, 'सम्मदिट्ठी' सम्यग्दृष्टि वाले 'देवा' देव [मुझको] 'समाहिं' समाधि 'च' और 'बोहिं' सम्यक्त्व 'दितु' देवें ॥४५॥
भावार्थ- श्रीआरिहन्त, सिद्ध, साधु, श्रुत और चारित्र-धर्म, ये सब मेरे लिये मङ्गल रूप हैं । मैं सम्यक्त्वी देवों से प्रार्थना करता हूँ कि वे समाधि तथा सम्यक्त्व प्राप्त करने में मेरे सहायक हों ॥४७॥
पिडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे पडिक्कमण ।
असद्दहणे अ तहा, विवरीयपरूवणाए अ॥४८॥
अन्वयार्थ---'पडिसिद्धाणं' निषेध किये हुए कार्य को 'करणे' करने पर 'किच्चाणं' करने योग्य कार्य को 'अकरणे' नहीं करने पर 'असद्दहणे' अश्रद्धा होने पर 'तहा' तथा 'विवरीय' विपरीत ‘परूवणाए' प्ररूपणा होने पर 'पडिक्कमणं प्रतिक्रमण किया जाता है ॥४८॥
* मम मङ्गलमहन्तः, सिद्धाः साधवः श्रुतं च धर्मश्च । ___ सम्यग्दृष्टयो देवा, ददतु समाधिं च बोधिं च ॥४७॥ + प्रतिषिद्धानां करणे, कृत्यानामकरणे प्रतिक्रमणम् ।
अश्रद्धाने च तथा, विपरीतप्ररूपणायां च ॥४८॥
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