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भरहेसर की सज्झाय ।
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६. मेतार्य--यह एक चाण्डालिनी का लड़का था, लेकिन किसी सेठ के घर पला था। यह परम दयाशील था, यहाँ तक कि किसी सुनार के द्वारा सिर बाँधे जाने से दोनों आँखें निकल आन पर भी प्राणों की परवा न करके सोने के जो चुग जाने वाले क्रौञ्च पक्षी को सुनार के हाथ से इस ने बचाया, और केवल ज्ञान प्राप्त किया।
--- आव०नि० गा० ८६७-७७० पृ० ३६७-६६ । १०. स्थूलभद्र-नन्द के मन्त्रीशकटाल के पुत्र और प्राचार्य संभूतिविजय के शिष्य । इन्हों ने एक बार पूर्व-गरिचित कोशा नामक गणिका के घर चौमासा किया । वहाँ उस ने इन्हें बहुत प्रलोभन दिया। किन्तु ये उस के प्रलोभन में न आये, उलटा इन्होंने अपने ब्रह्मचर्य की हदेता से उस को परम-श्राविका बनाया।
श्राव: नि० गा० १२८४ तथा पृ०६८ ११. वज्रस्वामी-अन्तिम दश-पूर्व-धर, आकाशगामिनी विद्या तथा वैक्रिय लब्धि के धारक । इन्हों ने बाल्य-काल में ही जातिस्मरणज्ञान प्राप्त किया और दीक्षा ली। तथा पदानुसारिणी लब्धि से ग्यारह अङ्ग को याद किया।
. . श्राव०नि० गा० ७६३-७६६, पृ० १६५-२१४ । १२. नन्दिषेण-दो हुए । इनमें से एक तो श्रेणिक का पुत्र । जो लब्धिधारी और परमतपस्वी था । यह एक बार संयम से भ्रष्ट हो कर वश्या के घर रहा, किन्तु वहाँ रह कर भी ज्ञान-बल से प्रतिदिन दस ब्यक्तियों को धर्म प्राप्त कगता रहा और अन्त में इस ने फिर से संयम धारण किया।
दूसरा नन्दिषेण-यह वैयावृत्त्य करने में अतिदृढ था । किसी समय इन्द्र ने इस को उस दृढता से चलित करना चाहा, पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org