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विधियाँ ।
२१५ पारेमि ? यथाशक्ति; इच्छामि०, इच्छा० पच्चक्खाणं पारियं, तहत्ति' कहे । पीछे दाहिना हाथ चरवले पर रख कर एक नमस्कार मन्त्र पढ़ कर जो पच्चक्खाण किया हो, उस का नाम ले कर नीचे लिखे अनुसार पढ़े:
" उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पोरिसिं साढपेरिसिं पुरिमड्ढं गंठिसहियं मुडिसहियं पच्चक्खाण किया चउन्विह आहार; आयंबिल निवि एकासना किया तिविह आहार; पच्चक्खाण फासिअं पालिअं सोहिअं तीरिअं किट्टि आराहिअं जं च न आराहिअं तस्स.मिच्छामि दुक्कडं । पीछे एक नमस्कार मन्त्र पढ़े।
तिविहाहार व्रत वाला इस तरह कहे:-"सूरे उग्गए उपवास किया तिविह आहार पोरिसिं साढपेरिसिं पुरिमड्ढं मुट्ठिसहियं पच्चक्खाण किया, फासि पालि साहिअं तीरिअं किट्टि आराहिअं जं च न आरहिअं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।” पीछे एक नमस्कार मन्त्र पढ़े।।
पानी पीने वाला दूसरे से माँगा हुआ अचित्त जल आसन पर बैठ कर पीवे । जिस पात्र से पानी पीवे उस पात्र को कपड़े से पोंछ कर खुश्क कर देवे । पानी का भाजन खुला न रक्ख ।
जिस को आयंबिल, निवि अथवा एकासना करना हो वह पोसह लेने से पहले ही अपने पिता पुत्र या भाई बगैरह घर के किसी आदमी को मालूम कर देवे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org